Last updated on March 9th, 2018 at 02:01 pm
आपातकालीन शक्तियां: Emergency powers of President of India in Hindi
Dear Readers,आज मैं Indian Polity के Chapter-11:भारत के राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां(Emergency powers of President of India)का Theory Part Hindi में share करने जा रहा हूं, जो आपके आने वाले SSC CGL, CHSL, CPO, MTS Exams के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे| इससे पहले मैं, भारत के राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां(Legislative powers of President of India) के बारे में important point share कर चुका हूं| यदि आपलोगों ने अभी तक नहीं पढ़ा है तो इसे पढ़ने के लिए निचे दिए गए Link को Click करे|
Legislative powers of President of India in Hindi
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Emergency powers of President
->अपातकाल वह स्थिति है, जिसमें सामान्य विधि से शासन संचालित नहीं किया जा सकता है| इस स्थिति में राज्यों की शक्तियों का हस्तांतरण केंद्र को हो जाता है| अर्थात राज्य की विधायी शक्ति संसद को तथा कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति को हस्तांतरित हो जाता है|
->भारतीय संविधान के भाग-18 के अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकालीन उपबंध का उल्लेख किया गया है|
->संविधान में इन उपबंधों को जोड़ने का उद्देश्य देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता, लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था तथा संविधान की सुरक्षा करना है|
->भारतीय संविधान में आपातकाल का प्रावधान जर्मनी के Weimar Constitution तथा 1935 के भारत शासन अधिनियम से प्रेरित है|
->भारतीय संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल का उल्लेख है:-
(1)राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352)
(2)राज्यों में संवैधानिक तंत्र के विफल होने से उत्पन्न आपात (अनुच्छेद 356) अर्थात राष्ट्रपति शासन
(3)वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)
->44 वें संविधान संशोधन, 1978 के तहत राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों में निम्नलिखित परिवर्तन किए गए|
(1)अनुच्छेद 352 में ‘आंतरिक गड़बड़ी’ के स्थान पर “सशस्त्र विद्रोह” शब्द जोड़ा गया|
(2)इस संशोधन के तहत राष्ट्रपति को ‘संपूर्ण भारत’ की वजाय उसके “किसी विशेष भाग” में भी आपातकाल लागू करने का अधिकार प्रदान किया गया|
(3)राष्ट्रीय आपातकाल बिना संसद की स्वीकृति के 1 माह तक लागू रह सकता है| 44 वें संविधान संशोधन के पहले इसकी समय अवधि 2 माह थी|
(4)आपातकाल (352, 356, 360) की घोषणा करने के लिए ‘केंद्रीय मंत्रिमंडल’ का लिखित परामर्श आवश्यक है|
(5)आपातकाल की उद्घोषणा को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है|
(6)आपातकाल में भी राष्ट्रपति अनुच्छेद 20 व 21 को निलंबित नहीं कर सकता |
राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352)
->राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा “केंद्रीय मंत्रिमंडल” की लिखित सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा निम्न स्थितियों में की जाती है|
->युद्ध, बाह्य आक्रमण, सशस्त्र विद्रोह
->राष्ट्रीय आपातकाल बिना संसद की स्वीकृति के 1 माह तक लागू रह सकता है
->राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा संसद के दोनों सदनों द्वारा 2/3 बहुमत से 1 माह के भीतर अनुमोदित होनी आवश्यक है|
->यदि संसद के दोनों सदनों द्वारा इसका अनुमोदन हो गया हो तो अपातकाल 6 माह तक अस्तित्व में रहती है|
->इसे और अधिक अवधि के लिए लागू रखना हो तो प्रत्येक 6 माह बाद संसद की स्वीकृति आवश्यक है|
->इसकी अधिकतम सीमा निश्चित नहीं है|
->राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा पर विचार करने के लिए लोकसभा का विशेष अधिवेशन तब बुलाया जा सकता है जब लोकसभा के कुल सदस्य संख्या का 1/10 सदस्यों द्वारा लिखित सूचना लोकसभा अध्यक्ष को या लोकसभा का सत्र यदि नहीं चल रहा हो तो राष्ट्रपति को देने पर|
->लोकसभा अध्यक्ष या राष्ट्रपति सूचना प्राप्ति के 14 दिनों के अंदर लोकसभा का विशेष अधिवेशन बुला सकते हैं|
->यदि लोकसभा सधारण बहुमत से आपात उद्घोषणा को वापस लेने का प्रस्ताव पारित कर देती है तो राष्ट्रपति को उद्घोषणा वापस लेनी पड़ती है|
->अब तक तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल लागू किया गया है|
(1)26 अक्टूबर, 1962 से 10 जनवरी, 1968
->अरुणाचल प्रदेश में चीनी आक्रमण के कारण लागू किया गया था|
->उस समय भारत के राष्ट्रपति ‘सर्वपल्ली राधाकृष्णन’ थे|
(2)3 दिसंबर, 1971 से 22 मार्च, 1977
->पाकिस्तान के आक्रमण के कारण जारी किया गया था|
(3)26 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977
->यह ‘आंतरिक गड़बड़ी’ के कारण जारी किया गया था|
->इस प्रकार पहली दो आपातकाल की घोषणा ‘बाह्य आक्रमण’ के कारण लागू किया गया जबकि तीसरी ‘आंतरिक गड़बड़ी’ के कारण|
->सशस्त्र विद्रोह के आधार पर आज तक राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा नहीं की गई है|(क्योंकि ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द अनुच्छेद 352 में 44 वें संविधान संशोधन 1978 में आया)
->राष्ट्रीय आपातकाल के समय यदि लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने पर हो तो उसे 1 वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है|
->राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त 6 मूल अधिकार स्वत: निलंबित हो जाता है|
->राष्ट्रीय आपातकाल लागू होने पर राज्य की राज्य सरकार व विधानसभा बनी रहेगी लेकिन उसे कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा उसकी सारी शक्तियां केंद्र सरकार के पास चली जाएगी|
राज्यों में संवैधानिक तंत्र के विफल होने से उत्पन्न आपात (अनुच्छेद 356) अर्थात राष्ट्रपति शासन या राज्य आपातकाल
->यदि किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति को ऐसा प्रतिवेदन प्रस्तुत कर दे की उक्त राज्य का प्रशासन संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप नहीं चल रहा है तो राष्ट्रपति उस राज्य में केंद्रीय मंत्रिमंडल के लिखित परामर्श पर आपातकाल की घोषणा कर सकता है|
->इस स्थिति में राज्य सरकार बर्खास्त कर दी जाती है तथा राज्यपाल के हाथों में समस्त शक्तियां केंद्रित हो जाती है|
->राज्य का बजट संसद द्वारा पारित किया जाता है एवं राज्य के लिए आवश्यक कानूनी भी संसद द्वारा ही बनाया जाता है|
->राष्ट्रपति शासन संसद के दोनों सदनों की स्वीकृति के बिना 2 माह तक लागू रह सकता है|
->संसद के दोनों सदनों की स्वीकृति के बाद 6 माह तक लागू रह सकता है|
->संसद के प्रत्येक 6 माह की स्वीकृति के बाद इसे 3 वर्ष तक लागू रखा जा सकता है|
->पंजाब में संविधान संशोधन( 68 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1991) द्वारा यह लगभग 5 वर्षों तक अस्तित्व में रहा|
->अब तक राज्यों में लगभग 124 बार राष्ट्रपति शासन(अनुच्छेद 356) लागू किया जा चुका है|
->सर्वप्रथम 1951 में राष्ट्रपति शासन पंजाब में लागू किया गया था|
->सर्वाधिक 10 बार राष्ट्रपति शासन यू.पी. में लगाया गया है|
वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद-360)
->यदि भारत में आर्थिक असंतुलन उत्पन्न हो जाए तो भारत का राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्रिमंडल के लिखित परामर्श पर आपातकाल की घोषणा कर सकता है|
->वित्तीय आपातकाल संसद के दोनों सदनों की स्वीकृति के बिना 2 माह तक लागू रह सकता है|
->संसद के दोनों सदनों की स्वीकृति के बाद 6 माह तक लागू रह सकता है|
->संसद की प्रत्येक 6 माह की स्वीकृति के बाद इसे अनिश्चितकाल तक लागू रखा जा सकता है|
->अभी तक वित्तीय आपातकाल एक बार भी लागू नहीं किया गया है|
वित्तीय आपातकाल लागू होने के दौरान-
->राज्य के वित्त विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए सुरक्षित रख लिए जाते हैं|
->अनुसूची-2 में शामिल पदाधिकारियों(राष्ट्रपति, राज्यपाल, लोकसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति, उपसभापति, विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधान परिषद के सभापति एवं उपसभापति, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक आदि) के वेतन, भत्ते और पेंशन में कटौती की जा सकती है|
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